जयपुर। खाटू श्याम मंदिर राजस्थान के सीकर में श्री कृष्ण को समर्पित है और यह पांडव पुत्र भीम के पौत्र बर्बरीक की कथा पर आधारित है। खाटू श्याम मेला 11मार्च 2024 की से 21 मार्च, 2024तक आयोजित होगा। 20 मार्च को बाबा का जन्मदिन मनाया जाएगा । यह मेला जो 100,0000 से अधिक लोगों को आकर्षित करता है। मुख्य मेला फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष दशमी, एकादशी और द्वादशी के दौरान आयोजित किया जाता है – फाल्गुन माह में चंद्रमा के उदय चरण से 10 वें से 12 वें दिन तक। यह मेला और उत्सव भीम के शक्तिशाली पौत्र और घाटोत्कच के पुत्र बर्बरीक के बलिदान की याद में मनाया जाता है, इन्हीं की खाटू श्याम के रूप में पूजा की जाती है। बर्बरीक में बचपन से ही वीर और महान योद्धा के गुण थे और इन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे तीन अभेद्य बाण प्राप्त किए थे। इसी कारण इन्हें तीन बाण धारी भी कहा जाता है। इस मंदिर की एक बहुत ही खास और अनोखी बात प्रचलित है। कहा जाता है कि जो भी इस मंदिर में जाता है इसे बाबा श्याम का हर बार एक नया रूप देखने को मिलता है। कई लोगों को उनके आकार में भी बदलाव नजर आता है।

बर्बरीक कैसे बने खाटू श्याम_महाभारत के युद्ध के दौरान बर्बरीक ने अपनी माता अहिलावती के समक्ष इस युद्ध में जाने की इच्छा प्रकट की। जब मां ने इसकी अनुमति दे दी तो उन्होंने माता से पूछा, ‘मैं युद्ध में किसका साथ दूं?’ इस प्रश्न पर माता ने विचार किया कि कौरवों के साथ तो विशाल सेना, स्वयं भीष्म पितामह, गुरु द्रोण, कृपाचार्य,अंगराज कर्ण जैसे महारथी हैं,इनके सामने पांडव अवश्य ही हार जाएंगे। इसलिए उन्होंने बर्बरीक से कहा कि ‘जो हार रहा हो, तुम उसी का सहारा बनो। बर्बरीक ने माता को वचन दिया कि वह ऐसा ही करेंगे और वह युद्ध भूमि की ओर निकल पड़े। भगवान श्रीकृष्ण युद्ध का अंत जानते थे इसलिए उन्होंने सोचा कि अगर कौरवों को हारता देखकर बर्बरीक कौरवों का साथ देने लगा तो पांडवों का हारना निश्चित है। तब श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण करके बर्बरीक से उनका शीश दान में मांग लिया। बर्बरीक सोच में पड़ गया कि कोई ब्राह्मण मेरा शीश क्यों मांगेगा? यह सोच उन्होंने ब्राह्मण से उनके असली रूप के दर्शन की इच्छा व्यक्त की। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने विराट रूप में दर्शन दिए। इसपर उन्होंने अपनी तलवार निकालकर श्रीकृष्ण के चरणों में अपना सिर अर्पण कर दिया। श्रीकृष्ण ने तेजी से उनके शीश को अपने हाथ में उठाया एवं अमृत से सींचकर अमर कर दिया। उन्होंने श्रीकृष्ण से सम्पूर्ण युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की इसलिए भगवान ने उनके शीश को युद्ध भूमि के समीप ही सबसे ऊंची पहाड़ी पर सुशोभित कर दिया, जहां से बर्बरीक पूरा युद्ध देख सकते थे।

खाटू श्याम कैसे बने हारे का सहारा
युद्ध की समाप्ति के बाद सभी पांडव विजय का श्रेय अपने ऊपर लेने लगे। आखिरकार निर्णय के लिए सभी श्रीकृष्ण के पास गए तो वह बोले, ‘‘मैं तो स्वयं व्यस्त था इसलिए मैं किसी का पराक्रम नहीं देख सका। ऐसा करते हैं, सभी बर्बरीक के पास चलते हैं।’’ वहां पहुंच कर भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे पांडवों के पराक्रम के बारे में पूछा तो बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया, ‘‘भगवन युद्ध में आपका सुदर्शन चक्र नाच रहा था और जगदम्बा लहू का पान कर रही थीं, मुझे तो ये लोग कहीं भी नजर नहीं आए।’’बर्बरीक का उत्तर सुन सभी की नजरें नीचे झुक गईं। तब श्रीकृष्ण ने उनसे प्रसन्न होकर इनका नाम श्याम रख दिया। यह मंदिर सीकर से लगभग 65 किमी और जयपुर से 80 किमी दूर स्थित है।