नीमच। शहर सहित अंचल में मंगलवार को गोवर्धन पूज का पर्व हर्षोल्लास और धूमधाम के साथ मनाया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में महिलाओं ने भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा अर्चना की। महिलाओं ने घरों के बाहर और चौक चौराहो पर गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर विधि विधान और परंपरा अनुसार पूजा अर्चना की। आमतौर पर दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजन का पर्व मनाया जाता है। मगर इस बार सोमवती अमावस्या होने के चलते यह पर्व दीपावली के दो दिन बाद मनाया गया। गोबर से बनाए गए गोवर्धन पर्वत 11 दिन तक इसी तरह स्थापित रहेंगे। जिसके बाद देवउठनी एकादशी के दिन इसकी पूजा अर्चना कर इसे विसर्जित किया जाएगा। इसके साथ ही एकादशी से मांगलिक वैवाहिक कार्यक्रम प्रारंभ हो जाएंगे। हिंदू मान्यताओं में गोवर्धन पूजा का बड़ा महत्व है। भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पूजन प्रारंभ किया था। भगवान इंद्र के तरफ से ज्यादा बारिश किए जाने पर बृजवासियों की रक्षा के लिए भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपने छोटी उंगली से उठाया था। इन्हीं सब पौराणिक मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए यह पर्व बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है।

गोवंशों का किया श्रृंगार…गोवंशों को मेहंदी लगाकर सींगों को तरह तरह के रंग किए गए। बाद में बेड़े व अन्य सजावट सामग्री से सजाया गया। इसके अलावा संपन्न पशुपालकों ने गोवंश के पैरों में घुंघरू,गले में कंठी से भी श्रृंगार किया। सुबह गोबर के गोवर्धन बनाकर पूजा करने से पहले सभी गोवंश की पूजा की गई। उसके बाद ही उन्हें बाहर निकाला गया। सुबह गाय, बैलों व बछड़ों को सजाकर पूजा करने के बाद घर से बाहर निकालते समय थाली बजाकर अभिनंदन किया गया। इसके बाद गोवर्धन देव की पूजा की गई। इसमें पशुधन की समृद्धि व अच्छे स्वास्थ्य की कामना की गई। गौपालको के अनुसार पशुपालकों के लिए यही दीपावली का मुख्य पूजन होता है। पूजा के दौरान समाज के पुरुष, धोती-कुर्ता व साफा पहनते हैं। महिलाएं भी सज-धज कर पूजन करती हैं। गोवर्धन की पूजा में रखा गया दूध बच्चों को पिलाया जाता है, जिससे वह स्वस्थ रहते हैं।