नीमच। 5 सितंबर को जन आशीर्वाद यात्रा पर रामपुरा पठार के ग्राम रावली कुडी में हुई पत्थर बाजी के बाद सत्तारूढ़ दल के नेता और जिला प्रशासन सब हरकत में आ गये । प्रशासन के लिये यह केवल कानून व्यवस्था की समस्या थी तथा भाजपा के वरिष्ट नेताओं के लिये घटना का राजनीतिकरण कर चुनाव जीतनें का अवसर । इस तथ्य की थोड़ी देर अवहेलना भी करें कि कौन जवाबदार था और वीडी शर्मा जी की बात को ही मान ले कि यह कांग्रेसी “गुण्डों” का काम है तब भी यह सवाल तो अनुत्तरित है कि यह आक्रोश क्यों उपजा । पिछले 06 माह से अधिक समय से गांधीसागर अभ्यारण्य के प्रस्तावित चीता प्रोजेक्ट को लेकर वन विभाग सक्रियता से काम कर रहा है ।  मैनें और ग्राम वासियों ने अनेको बार कहा हम चीता प्रोजेक्ट का स्वागत करते है । मै और ग्राम वासी निरन्तर आग्रह करते रहे कि चीता प्रोजेक्ट और अभ्यारण्य की सीमा के विस्तार से रावली कुई के पशुपालकों को हो रही कठिनाईयों का समाधान करें । मैने बार बार आग्रह किया कि वन विभाग के अधिकारी ग्राम वासियों के साथ बैठें, खुले मन से चर्चा करें उनकी समस्याओं का समाधान करें । कितनी बार मैनें जिला कलेक्टर और मनासा के अनुविभागीय अधिकारी से आग्रह किया कि हस्तक्षेप करें । कितनी बार ग्राम वासी ट्रेक्टर में बैठ कर जिला मुख्यालय कलेक्टर और अन्य अधिकारी से मिलने गए । कितनी बार ग्राम वासी और विशेषकर भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ता स्थानीय विधायक और सांसद से मिलनें गये । उनके सामनें पेट पालनें का पक्ष था । किसने सुना ? पिछले दिनों उसी विषय पर मेरा एक फेसबुक पोस्ट काफी पढ़ा गया । मुख्यमंत्री जी को ज्ञापन देने का प्रयास किया तो थाने में बैठा दिया गया । एक अधिकारी तो बात कर बात कर लेता । ग्रामीणों का डर बढता चला गया । समाधान कहीं नहीं था । हर बार वन विभाग अधिकारियों का तर्क था कि प्रोजेक्ट दिल्ली का है और प्रधान मंत्री जी के कार्यालय का है । वे विवश है । (मैं जानता हूँ अब वे उसे स्वीकार नहीं करेगे ) । प्रजातंत्र में प्रजा से संवाद करने को तंत्र तैय्यार नहीं था । रावली कुई की घटना की इस जड़ को पहचानियें ।
अभ्यारण्य की सीमा कैसे बढ़ी, किस शासकीय आदेश के तहत बढ़ी । कोई बताएगा ? जिसनें भी सीमा विस्तार प्रस्तावित किया, वह बताएगा कि उक्त प्रस्ताव में स्थानीय पशुपालकों को आनें वाली समस्याओं का आकलन और निराकरण के लिये क्या प्रस्ताव था । और था तो उसक क्रियान्वयन कैसे और कब हुआ ।
जिला प्रशासन की यही निष्क्रियता, राजनेताओं की मानवीय संवेदनाओं से उपर अपनें राजनैतिक हितों की पूर्ती ही रावली- कुई घटना का कारण है । मैने तो वी.डी. शर्मा जी से हाथ जोड़ कर निवेदन किया कि वे टिकिट की लड़ाई में लगे उनके नेताओं के फीडबैक पर नहीं जाये, खुद आये, कांग्रेसी “गुण्डों” से नहीं  स्थानीय भाजपाई “संतों” से बात करें ।
यदि थोड़ी भी संवेदना शेष है तो वे समझ पायेगें कि रावली कुई की घटना केवल प्रशासन और उनके स्थानीय नेताओं की असफलता का परिणाम है ।
रावली कुई इस लिये प्रकाश में आ गया कि वहां यह घटना हो गई । परन्तु इस समय समूचा रामपुरा पठार तीन प्रोजेक्टस से पीडित और प्रताड़ित है । यदि पठार के अधिकांश ग्राम वन विभाग के अत्याचार से परेशान है तो खीमला, बस्सी, गुगल खेड़ा, धामनिया जैसे ग्राम ग्रीनको के माइक्रो हायडल प्रोजेक्ट या दिलीप बिल्डकान द्वारा क्रियान्वित किये जा रहे है  प्रधान मंत्री जी की नल जल योजना से प्रभावित है ।
ये वे ग्राम है जिन्हे गांधी सागर बांध के निर्माण से प्रभावित होने के कारण वर्तमान स्थान पर बसाया गया था । इनकी जमीन के बदले इन्हें जो जमीन दी गई वह पट्टे पर थी । कुछ अतिरिक्त पथरीली जमीन पर उनका पिछले 70 वर्षों से कब्जा है जिसे उन्होने अपनी मेहनत और पसीने से उपजाऊ बनाया है ।
अब वही जमीन अधिग्रहित कर कम्पनीयों को दे दी गई है । खड़ी फसलों पर जेसीबी चला दी गई । खीमला में आदिवासियों को बहला कर रजिस्ट्री कर ली । ग्राम वासी धरनें पर बैठे । कम्पनी ने लिखीत अनुबंध किया पर उसका पालन नहीं किया । ग्रामवासी फिर धरने पर बैठें । कम्पनी नें 03 दिन का समय मांगा । ग्राम वासी उठ गये । पर अगले ही दिन रामपुरा थानें ने उन्हें धमकानें के लिये धारा 151 का नोटिस दे दिया । भदाना में वन विभाग के कर्मचारियों नें गरीब आदिवासीयों को इसलिये मारा कि वे गलती से उनकी सीमाओं में चले गये थे । ग्राम बर्डिया में आदिवासीयों को कम्पनी के अधिकारियों नें चोरी की आशंका में नंगा कर मारा । पुलिस थानें में दबाव डाल कर FIR डलवा ली । खीमला और बैसला में वनकर्मियों महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया, उनके मोबाईल छीनें और तोड़ डाले ।  समूचा प्रशासन जन विरोधी हो गया है ।

तब जब कुण्ठा और निराशा हो, कहीं सुनवाई नहीं हो तो भूखा पेट गलत रास्ते चला जाये तो आश्चर्य मत कीजिये । दोषी वे नहीं जिन्होंने इस घटना को अंजाम दिया , वे है जिन्होंने पशुपालकों को ऐसा करनें के लिये विवश किया ।
उस दिन रावली कुई के ग्रामीणों नें सोचा यात्रा का स्वागत करेगें तो अपनी बात करनें की मौका मिलेगा । वहाँ कांग्रेस के लोग भी थे भाजपा के भी । साफे और हार भी थे । नेता नीचे उतरनें को तैय्यार नहीं थे, बात भी नहीं करना चाहते थे । हार और साफों से स्वागत की मंशा रखनें वाले लोग हत्यारे हो गये । उन पर धारा 307 लगा दी गई । यदि वहां नेताओं की हत्या करनें का षड्यंत्र था तो सी.आई.डी. और SB के अधिकारी क्या कर रहे थे । इतनें बड़े षड़यंत्र का उन्हें पता भी नहीं लगा । रावली कुई के लोगों पर धारा 307 लगा कर सरकार अपनी ही असफलता को प्रमाणित कर रही है ।

दोहराता हूँ । वी.डी. शर्मा जी आप आइये । या किसी प्रतिनिधी को भेजिये । स्थानीय नेताओं को अलग रखिये । रावली कुई और पूरे पठार के ग्रामीणों से बात कीजिये । आप समस्या की तह तक पहुँच जायेंगे ।

अंतिम बातः- खेमराज गुर्जर का नाम गृह मंत्री जी नें लिया । गृहमंत्री जी उस गांव के 05 गवाह भी लाइयेगा, जो कहे कि खेमराज गुर्जर गुण्डा है और उस दिन घटना को उसी ने अंजाम दिया ।
पुलिस तो आपकी है पर भगवान तो हम सबका है । वह सब देख रहा है ।