नीमच। सुखदेव मुनि की पावन धरा सुखानंद, जिसके नाम मात्र से ही सुख और आनंद की अनुभूति हो जाती है सुखानंद का नाम आते ही भक्तों के मन में ऊंची ऊंची पहाड़ियां, कल कल करता झरना, बंदरों की अठखेलियां, चारों और हरियाली की चादर ओढे पहाड़ मानों स्वर्ग की अनुभूति इस पावन स्थल पर आने से मिलती है। कहने को तो मात्र सुखानंद है लेकिन इस नाम के पीछे छिपी इसकी बड़ी महिमा है, शास्त्रों, पुराणों में इस स्थल की महिमा मंडन है। दरअसल हजारों वर्षो पूर्व सुखदेव ऋषि इस स्थल पर आकर तपस्या करने लगे और हमेशा मां गंगा के पावन पवित्र जल में स्नान कर इसी पवित्र जल को लेकर महादेव का अभिषेक करवाया करते थे। मां गंगा सुखदेव मुनि की तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुई और सुखदेव मुनि से बोली की आप गंगा लेने इतनी दूर आते हैं तो क्यों न मैं ही यहां प्रकट हो जाऊं तभी से मां गंगा पहाड़ियों के बीच गंगा कुंड में विराजित हैं और  माना जाता की उक्त गुफा का दूसरा छोर सीधे गंगा नदी में मिलता हैं। इस मंदिर की एक और विशेषता यह हैं की यह भोलेनाथ पहाड़ियों के बीच जमीन को फाड़ कर प्रकट हुए हैं।
सावन माह में लगता है भक्तों का मेला-सुखानंद में वैसे तो प्रतिवर्ष भक्तों का आना-जाना लगा रहता है लेकिन श्रावण मास में खासकर भक्तों का मेला यहां देखने को मिलता है। इस स्थल पर भक्त प्रदेश ही नहीं अपितु अन्य राज्यों के कोन कोने से भोलेनाथ के दर्शन हेतु आते हैं।
अस्थि विसर्जन का भी है महत्व
 इस स्थल पर माना जाता है कि मृतक की अस्थियां इस स्थल पर प्रवाहित करने से मृतक की आत्मा को शांति मिलती है और उसे मोक्ष प्राप्त होता है, साथ ही यहां अनेक संस्थाओं द्वारा बंदर बाटी का भी आयोजन होता है।
घोषणाओं में बना पर्यटन स्थल- सुखानंद को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा वर्तमान मंत्री ओमप्रकाश सखलेचा के नक्षत्र वाटिका पर हुई सभा में करीब 12 वर्ष पूर्व घोषणा की थी लेकिन आज तक उक्त स्थान पयतन स्थल के रूप में विकास नही हो सका। । इस स्थल को संवारने के लिए घोषणा तो सभी नेताओं ने की लेकिन इस स्थल से जाने के बाद सभी इसे भूल गए। साथ ही वर्तमान की नीमच जिला प्रभारी मंत्री उष ठाकुर ने भी उक्त स्थल के लिये घोषणाओं का अंबार लगा दिय लेकिन कार्य के नाम पर एक का नहीं हो सका।
अव्यवस्था की चपेट में स्थल- रमणीय स्थल सुखा नंद वर्तमान में अव्यवस्थाओं की चपेट में है। गंदगी का अंबार इस स्थल चारों ओर लगा रहता है, महिला के स्नान करने के बाद कपडे बदल हेतु सुविधा नहीं होने से महिल परेशान होती रहती है। मंदिर जाने हेतु सीडियों की दुर्दशा हो रही . कहने को तो यहां प्रति वर्ष श्रावन मास आने से पहले और गर्मियों लगने वाले मेले के लिए बैठकें होंती है निर्णय भी काफी लिए जाते लेकिन बैठक खत्म होते जगप्रतिनिधि सहित अधिकारी इस स्थल को भूल जाते हैं, जिस परिणाम उक्त स्थल जिसकी महिमा होने के बावजूद आज मूलभ
सुविधाओं के लिए भी यह स्थल असहज हो रहा है ।